रविवार, जुलाई 02, 2023

प्रीत के स्वप्न


अधर मौन हैं पर, नयन सब कह रहें हैं।

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


सिहरन उठ रही है सीने में धड़कन कह रही है।

'पकड़ लो हाथ पिया' ये दूरी व्याकुल कर रही हैं।

बिन आपके एक पल हमको पागल कर रहा है।

सिर से लेकर पांव आपकी यादों में जल रहा है।


झुमका पायल बिंदिया निर्णय कर रहें हैं।

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


काम सारे खत्म कर लूं आज मैं जल्दी जल्दी में।

क्यों इतना अधिक समय लगाते हैं लोग हल्दी में।

हाथ की मेंहदी मिलन में देरी कर रही है।

अचरज है कि मेरी सांस, अबतक चल रही हैं।


ये सारे नाॅंत-रिश्ते कैसी प्रलय कर रहें हैं।

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


इस तन्हा घर बार में खोज रहीं हूं छांव आपकी।

ढाई टन का लहंगा मेरा जंजीर बन गया है पांव की।

क्या करूं ये नियम धरम करम सब करने पड़ते हैं।

मिलन के आनन्द में ये वियोग भी सहने पड़ते हैं।


थोड़ा और संभालो खुद को विनय कर रहें हैं

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


© पवन कुमार यादव


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