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रविवार, जुलाई 02, 2023

प्रीत के स्वप्न


अधर मौन हैं पर, नयन सब कह रहें हैं।

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


सिहरन उठ रही है सीने में धड़कन कह रही है।

'पकड़ लो हाथ पिया' ये दूरी व्याकुल कर रही हैं।

बिन आपके एक पल हमको पागल कर रहा है।

सिर से लेकर पांव आपकी यादों में जल रहा है।


झुमका पायल बिंदिया निर्णय कर रहें हैं।

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


काम सारे खत्म कर लूं आज मैं जल्दी जल्दी में।

क्यों इतना अधिक समय लगाते हैं लोग हल्दी में।

हाथ की मेंहदी मिलन में देरी कर रही है।

अचरज है कि मेरी सांस, अबतक चल रही हैं।


ये सारे नाॅंत-रिश्ते कैसी प्रलय कर रहें हैं।

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


इस तन्हा घर बार में खोज रहीं हूं छांव आपकी।

ढाई टन का लहंगा मेरा जंजीर बन गया है पांव की।

क्या करूं ये नियम धरम करम सब करने पड़ते हैं।

मिलन के आनन्द में ये वियोग भी सहने पड़ते हैं।


थोड़ा और संभालो खुद को विनय कर रहें हैं

प्रीत के स्वप्न सारे, परिणय बन रहें हैं।।


© पवन कुमार यादव


वीडियो पाठ 👇




शनिवार, फ़रवरी 27, 2021

तुम मेरी कौन हो!

तुम ही मेरी कविता हो, तुम ही मेरा उपन्यास हो!

तुम ही मेरी लघुता हो, तुम ही विन्यास हो!

तुम ही मेरी हार हो, तुम ही मेरा प्रयास हो!

तुम ही मेरी जीत हो, तुम ही इतिहास हो!

तुम ही मेरी भंवर हो, तुम ही किनारा हो!

तुम ही मेरी मृत्यु हो, तुम ही जीवन धारा हो!

तुम ही मेरी रुकमणी, तुम ही मेरी राधा हो!

तुम ही मेरा लक्ष्य हो, तुम ही बाधा हो!

तुम ही मेरा शब्द हो, तुम ही मेरी भाषा हो!

तुम ही मेरे हर भाव की परिभाषा हो!

तुम ही मेरा दुख हो, तुम ही निराशा हो!

तुम ही मेरी तिनका हो, तुम ही मेरी आशा हो!

तुम ही मेरी संपदा हो, तुम ही मेरी निधि हो!

मैं अनंत जैसा विस्तृत, तुम ही मेरी परिधि हो!

तुम ही मेरा पुण्य हो, तुम ही मेरा पाप हो!

तुम ही मेरे प्रायश्चित हो, तुम ही मेरा ताप हो!

तुम ही मेरी दोस्त हो, तुम ही मेरा दुश्मन!

तुम ही मेरी जवानी हो, तुम ही मेरा बचपन!

तुम ही मेरी अवनयन हो, तुम ही मेरा उन्नयन हो!

तुम ही मेरी परीक्षा हो, तुम ही मेरा चयन हो!

तुम ही मेरी अंत्येष्टि हो, तुम ही मेरा उपनयन हो!

© पवन कुमार यादव

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शुक्रवार, जनवरी 01, 2021

नये साल में सबको नयी-नयी सौगात मिले...

जीवन की खुशियों में इतनी सी बात मिले।
नये साल में सबको नयी-नयी सौगात मिले।

बीती बातों के बारे में, अब कैसा मंथन हो।
समय के खेल का, क्यों दुबारा चिन्तन हो।
कालचक्र की धारा के, इस पार खड़े हैं हम।
तब से लेकर आज, कुछ अवश्य बढ़ें हैं हम।

सहयोग की बेला में मानवता का हाथ मिले,
नये साल में सबको नयी-नयी सौगात मिले।

कितना खोया कितना पाया के विश्लेषण में।
देखो, उलझ न जाना भूतकाल के अन्वेषण में।
थोड़ा-ज्यादा जितना है, उसका सम्मान करें।
नव - सूची में शामिल मित्रों का भी मान धरें।

जो छूट गए उन रिश्ते का फिर से साथ मिले।
नये साल में सबको नयी-नयी सौगात मिले।

नव-मंगल बेला का, जमकर उल्लास मनायें।
लक्ष्य-निर्धारित कर क्षमताओं पर आस जगायें।
नयी उमंग, नये जोश का, अभिनंदन करते हैं।
सबको मिले सफलता वाछिंत, वन्दन करते हैं।

बढ़े सद्भाव धरा पर, अवगुणों को मात मिले।
नये साल में सबको नयी-नयी सौगात मिले।
©️ पवन कुमार यादव


आपको एवं आपके पूरे परिवार को नव-वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं।🙏🏻
ईश्वर आप सभी पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें।💐
आप सदैव उन्नति के पथ पर अग्रसर रहें हमारी ईश्वर से यही कामना है।🙏🏻💐

बुधवार, अगस्त 12, 2020

"वनवास"



जलाते हैं जब स्वयं को तब प्रकाश होता है!

कुछ इस तरह पूरी सृष्टी का विकास होता है!

भर जाती है जिंदगी जब अमावस की रातों से,

तब एक चाँद के टुकड़े का एहसास होता है!


इस टूटे - दिल में निर्जनता का वास होता है!

दुःखों का पहाड़ हमारे आस - पास होता है!

क्यों डगमगाने लगते हैं इरादे किसी दृढ़ी के?

जब सबको भगवान पर पूर्ण विश्वास होता है!


दुर्भाग्य पर हमारा एक विफल प्रयास होता है!

देख कर उन बच्चों को मन निराश होता है!

छीन लेती है नियति जब उनके माता-पिता, फिर,

जिंदगी के हर मोड़ पर उनका परिहास होता है!


दुनियाँ में कहाँ कोई काम आसान होता है?

अपनी इच्छाओं हेतु हर कोई परेशान होता है!

समय भी बड़े धैर्य से गढ़ती है चरित्र मानव का,

क्योंकि 'श्री-राम' बनने के लिये ही वनवास होता है!


-पवन कुमार यादव।


शनिवार, अगस्त 01, 2020

अक्षर-अक्षर

अक्षर-अक्षर ज्ञान बढ़ाएंगे, जन-जन का मान बढ़ाएंगे!
अक्षर-अक्षर ज्ञान बढ़ाएंगे,जन-जन का मान बढ़ाएंगे!

धरा सुशोभित नवपुष्पों को आधार बनाकर,
कोमल-कल्पित सपनों को साकार बनाकर,
उन्मुक्त हँसी का परचम दुनिया में लहराएंगे!
अक्षर-अक्षर ज्ञान बढ़ाएंगे,
जन-जन का मान बढ़ाएंगे!

नव कर्ण-आधारों के कन्धों का भार घटाकर,
स्वस्थ सुसज्जित कोमलता का संसार बनाकर,
हृदय युक्त देश का, हर स्थायी भाव बनायेंगें!
अक्षर-अक्षर ज्ञान बढ़ाएंगे,
जन-जन का मान बढ़ाएंगे!

जाति-पांति और रंग-द्वेष का भेद मिटाकर,
एक सशक्त समाज की, दृढ़ बुनियाद बनाकर,
स्वर्णिम भविष्य का, सुंदर महल बनायेंगें!
अक्षर-अक्षर ज्ञान बढ़ाएंगे,
जन-जन का मान बढ़ाएंगे!

आओ मिलकर हम एक अभियान चलाते हैं,
नन्हे-नन्हे फूलों एक बेहतर इंसान बनाते हैं,
मुरझाये चेहरों का फिर से बचपन लौटाएंगे,
अक्षर-अक्षर ज्ञान बढ़ाएंगे,
जन-जन का मान बढ़ाएंगे!

© पवन कुमार यादव



मंगलवार, जून 09, 2020

अन्तर्भाव- कविता

हे ईश्वर!
मुझे विशालता दो इतना कि,
ढँक सकूँ मैं पूरे संसार को।
और गहराई दो इतना कि,
समाहित हो सब कुछ मेरे ही अंदर।
और सामर्थ्य दो इतना कि,
उठा सकूं भार मैं सब के दुखों का।
और विस्तार दो इतना कि,
प्रत्येक वस्तु मेरी परिधि में हो।
संपूर्ण मानवता का एक लघु प्रतिनिधि,
प्रार्थना कर रहा है आपसे।
संभवतः चुनौती दे रहा है,
आपकी सत्ता को।
उस 'अज्ञात' को चुनौती देना,
मानवीय अज्ञानता का बोधक है।
अज्ञानता अहंकार की जननी है।
हे प्रभु! क्षमा करिए,
मुझे और मेरे धृष्ट मन को।
मैं अपनी प्रार्थना वापस लेता हूं,
इसलिए नहीं कि यह अस्वाभाविक है।
बल्कि मेरी सीमाएं निश्चित है।
एक अकिंचन निवेदन है कि,
मत दो मुझे यह लघु विशालता,
न ही ये छिछली गहराई,
नहीं चाहिए मुझको सीमित विस्तार,
जिसमें प्रत्येक संसार मेरी परिधि में हो।
बस केवल इतना कर दो भगवान...
कि मैं प्रत्येक वस्तु की परिधि में समा जाऊं।
इससे शायद मेरा अस्तित्व जीवित हो उठे।

© पवन कुमार यादव



गुरुवार, जनवरी 02, 2020

नया साल 2020


ये साल नया क्या लेकर आएगा?
क्या वो शाम दोबारा आएगी?
जो हर मुश्किल का हल बतलाएगी?
क्या वह बिखरी याद दोबारा आएगी?
जो रात की तड़पन लेकर जाएगी?
क्या वो प्रेम-प्रतीक-पुष्प दुबारा आयेगा?
या फिर पैरों तले ही कुचला जाएगा?
क्या ये साल दुबारा आयेगा?
जो हमको फिर से मिलवायेगा?
-पवन कुमार यादव



यह नूतन वर्ष आपको एवं आपके परिवार को नयी ऊँचाई प्रदान करे। ईश्वर आपको सभी को एक नयी ऊर्जा से भर दे, जिससे आपसी सौहार्द बढ़े!
💐🙏💐

रविवार, नवंबर 05, 2017

बाल-कविता


कभी जो आई मुसीबत अकेले दौड़ौगे।
संघर्षों से कब तक टूट कर लड़ोगे।
जीवन के सफर में जरूरी होता है मित्र,
कौन देगा साथ यदि विश्वास किसी का तोड़ोगे।

जोक्स किससे सुनोगे और किसे सुनाओगे।
बिना दोस्त के पढ़ने किसके साथ जाओगे।
अगर अब नहीं बदलोगे आदतें अपनी,
एक दिन खुद ‘उपहास के पात्र’ बन जाओगे।
थोड़ा तो ‘अदब’ रखो बड़ो की बातों का,
यदि फिसल भी गए तो संभल जाओगे।

अपने लक्ष्य की तरफ एक कदम बढ़ा कर देखो।
जो हो रही हैं गलतियां उनको निपटाकर सीखो।
रास्ते का हर पत्थर मुस्कुराएगा तुम्हारी कामयाबी पर,
बस ‘आत्मसात’ का दीपक हृदय में जला कर रखो।


By- Pavan Kumar Yadav

मंगलवार, नवंबर 01, 2016

दीपावली

वो दीपावली अब भी मेरे जहन में है।
मानों कल की ही बात हो,
हर बार की तरह इस बार भी,
रंगोली बनायी गई।
हर जगह दीयेे सजाए गये।
मिठाईयां बांटी गयी।
लोग खुशियां मनाये।
पर कोई ऐसा भी था।
जो अमावस की स्याह रातों में तन्हा था।
वो सिर्फ एक दीया नही,
एक सैनिक या फिर एक दूत उजालों का,
अमावस से लड़ने के लिए,
उसे मिटाने के लिए,
पूरी तरह से मात देने के लिए,
अकेले ही युद्धभूमि में उतरा था।
‘अपने’ उसका कितना साथ देते है?
नि:सन्देह तेल-बाती दीया के साथ रहेंगे।
परन्तु,
शत प्रतिशत जीत के लिए,
दीपावली का जश्न मनाने के लिए,

हवाओं के रुख का भी अनुकूल होना जरूरी है।

Written by - Pavan Kumar Yadav

मंगलवार, मई 10, 2016

"सपने"



कल शाम को मैने कुछ सपने चुने थे।
वो सपने मेरे सपनों से बहुत दूर थे।
सोचा था कि,
सबको समेट कर सुख दुःख बाटूंगा।
जब सुबह आंख खुली तो देखा,
सपने जख्मी हालत में बिखरे पड़े थे।
एेसे जख्म भरा नही करते,
बस नासूर बनकर चुभा करते है।
मै इन्हे छोटा भाई समझ कर माफ कर दूं,
पर किस लिए, सपने थे,
जिन्हे मै चलना सिखा रहा था।
आज वो दौड़ गये बहुत दूर।
मुझसे बहुत आगे निकल गये।
और मैं मूढ़ की भांति खड़ा रहा।
अब मुझमें रोकने की हिम्मत न थी।
एकटक देखता रहा उन्हे,
आंखो से ओझल हो जाने तक।।

Written by- Pavan Kumar Yadav.



गुरुवार, मार्च 17, 2016

"कुछ रिश्ते"

कुछ रिश्ते समय की भाग दौड़ में खो जाते है।
लोगो के डर से वो किसी और के हो जाते है।
कुछ रिश्ते ऐसे भी रह जाते है।
जिनके महल दो दिलों के दरमियाँ ढ़ह जाते हैं।
कुछ रिश्ते हर घूंट जहर का पी जाते हैं।
जीतकर मौत को भी जी जाते है।
कुछ रिश्ते अश्रुधार में बह जाते है।
जो बिन बोले सबकुछ कह जाते हैं
कुछ रिश्ते पर बदनामी के कफ़न पड़ जाते है।
तो कुछ खुदगर्ज़ इरादों पर बलि चढ़ जाते हैं।
कुछ रिश्ते आम होते है।
सब की जुबा पर उन्ही के नाम होते हैं।
कुछ रिश्ते केवल दाम के होते है।
अच्छी कीमत पर रिश्ते बदनाम होते हैं।
कुछ रिश्ते काल कोठरी में घुटते है।
खुद में जीते खुद में मरते है।
कुछ रिश्ते नया सवेरा लाते हैं।
जो रिश्तो की नयी परिभाषा लिख जाते है।
कुछ रिश्ते शाम की तरह ढल जाते हैं।
वो साम्य जीवन का कल बन जाते हैं।
कुछ रिश्ते मेघ बन जाते हैं।
बैठे बैठे यूं ही बरस जाते है।
कुछ रिश्ते अक़्सर गुमशुम रहते है।
आँखे आवाज लगाती, होठ चुप चुप रहते हैं।
कुछ रिश्ते आँखों में कह लेते है।
हाल ए दिल ख़ामोशी में पढ़ लेते हैं।
कुछ रिश्ते का ये पैमाना होता है।
बस वो पैमाने में होता है।
कुछ रिश्ते नाजुक फूल होते हैं।
दिल को जख्मी करने वाले इनके शूल होते है।

Written by - Pavan Kumar Yadav

मंगलवार, नवंबर 24, 2015

प्रेम रतन धन पायो

बहुत दिन बाद मौका पायो।
सोचली तनकी फ़िल्म देख जायो।
कुछ यार मित्र बहुत समझायो।
हम कहली मूड ख़राब करै आयो।
देखि लिहौ फिर हमे चले बतायो।
बड़ी देर बाद घडी तीन बजायो।
हम सब नियम पत्नी जी को समझायो।
तभी मन भी शंका से भर आयो।
पंडित जी सुबहिये अशुभ यात्रा संयोग बतायो।
हमहू पत्नी जी  से पूजा थाल मंगायो।
पांच फेरा आरती उतरावयो
चन्दन टिका भी लगवायो।
जैसे हम पहला कदम बढ़ायो।
एक जोरदार छीक आयो।
मन बहुत घबरायो।
लेकिन पत्नी जी ढाढस बढ़ायो।
पहुचते लंबी कतार सामने पायो।
चुपके से महिला लाइन में उनको घुसायो।
टिकट लेकर अंदर जायो।
पिक्चर हाल पसंद आयो।
उसकी कुर्सी भी पसंद आयो।
इर्द गिर्द महिलाऐं भी खूब लुभायो।
मगर फ़िल्म तनिक भर न भायो।
फिर भी मजा भरपूर आयो।
मजा में चार चाँद लगायो।
जब अपनी पत्नी कार्नर सीट पायो।
अब हम सबको प्यार से समझायो।
केहू देखे मत जायो।
नही तो पैसा फूंका जायो।
समय सो अलग खायो।
गाना में थोडा मजा आयो।
सोनम ज्यादा पतली नज़र आयो।
गुंडा भी कुछ उखाड़ न पायो।
दोहा लिख लिख गायो।
फिरौ मीराबाई भौकाल न पायो।
देख के प्रेम रतन धन पायो।
जनता खाली गच्चा ही खायो।
सच्ची सच्ची बतायो।
केहू धन वसूल पायो।

Written by- Pavan Kumar Yadav

शनिवार, सितंबर 05, 2015

श्री कृष्ण

जो जन्म लेते ही सारी बेड़िया तोड़ दिए थे।
कारागार में माता पिता के लिए सारे दरवाजे खोल दिए थे  ।। १

जिसकी बाल क्रीड़ाए पढ़ कर तन मन आनंदित हो जाता है ।
बैठे-बैठे ध्यान हमारा वृन्दावन की गलियो में चला जाता है   ।। २

जिसने समस्त मानव को जीवन का उद्देश्य दिया।
गीता का ज्ञान देकर , मानव कल्याण का उपदेश दिया  ।।३

जिसने सभी को प्रेम करना सिखलाया था ।
और सही मायने में प्रेम का मतलब समझाया था  ।।४

जिसने जाति-पाति, ऊँच-नीच से दूर, दोस्ती का एक रिश्ता बनाया था ।
अत्यंत निर्धन सुदामा को दो लोको का स्वामी बनाकर,इसको खूब निभाया था  ।।५

महाभारत का ये उद्देश्य निकल कर आता है ।
अधर्मी की हार तथा धर्मी अकेला जीत जाता है  ।।६

दो तरह के लोगो मे कुछ श्री कृष्ण के अंश है ।
मानव जाति के विध्वंसक ही कलयुग के कंस है ।।७

श्री कृष्ण मात्र एक शब्द नही एक परिभाषा है।
संसार से हारे दीन दुखियो को जीवन जीने की आशा है  ।।८
              Written By-Pavan Kumar Yadav

शनिवार, अगस्त 15, 2015

||मैं भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं||

किसी की जिन्दगी का अधूरा किस्सा हूं।
गरीबी में जीने को मजबूर उस परिवार का हिस्सा हूं।
सारी विपदाओं से लड़कर आगे बढ़ना।
सारे सुख-दुःख खुद ही सहते रहना।
आज पूरी दुनिया से कहना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 1

आभावों को छोड़ स्वभाव बदल कर जीता हूं।
मुसीबतो से डरकर नही उनसे लड़कर सीखा हूं।
मेहनत का कोई विकल्प नही होता।
जब हो दृढ़ संकल्प विफलता का नामो निशान नही होता।
सूरज की तरह जलकर चमकना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 2

उनके आदर्शो को मार्ग बनाकर चलना है।
सबके साथ सबका हाथ पकड़कर आगे बढ़ना है।
यहां हर व्यक्ति विकास की सीढ़ी है।
बदलती हुई तस्वीर देश की अगली पीढ़ी है।
ऐसे विकसित स्वदेश में रहना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 3


एक हाथ में गीता तो दूसरे में कुरान रहेगा।
धरती पर कभी धर्म के नाम पर खून नही बहेगा।
काबिलियत से भारत को फिर विश्वगुरू बनाना है।
अपने तिरंगे के नीचे पूरा विश्व लाना है।
अपनी हर सांस मातृभूमि पर कुर्बान करना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 4


भारत को विकास की ऊचाँइयों पर ले जाना है।
बेरोजगारी, भ्रष्टाचार का दाग माथे से मिटाना है।
यहां किसी को न हिन्दू न मुसलमान बनाएगें।
इस देश को सिर्फ हिन्दुस्तान बनाएगें।
फिर से मिलकर 'जय हिन्द' कहना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 5



      -written by PAVAN KUMAR YADAV