वो दीपावली अब भी मेरे जहन में है।
मानों कल की ही बात हो,
हर बार की तरह इस बार भी,
रंगोली बनायी गई।
हर जगह दीयेे सजाए गये।
मिठाईयां बांटी गयी।
लोग खुशियां मनाये।
पर कोई ऐसा भी था।
जो अमावस की स्याह रातों में तन्हा था।
वो सिर्फ एक दीया नही,
एक सैनिक या फिर एक दूत उजालों का,
अमावस से लड़ने के लिए,
उसे मिटाने के लिए,
पूरी तरह से मात देने के लिए,
अकेले ही युद्धभूमि में उतरा था।
‘अपने’ उसका कितना साथ देते है?
नि:सन्देह तेल-बाती दीया के साथ रहेंगे।
परन्तु,
शत प्रतिशत जीत के लिए,
दीपावली का जश्न मनाने के लिए,
हवाओं के रुख का भी अनुकूल होना जरूरी है।
Written by - Pavan Kumar Yadav
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