मंगलवार, मई 10, 2016

"सपने"



कल शाम को मैने कुछ सपने चुने थे।
वो सपने मेरे सपनों से बहुत दूर थे।
सोचा था कि,
सबको समेट कर सुख दुःख बाटूंगा।
जब सुबह आंख खुली तो देखा,
सपने जख्मी हालत में बिखरे पड़े थे।
एेसे जख्म भरा नही करते,
बस नासूर बनकर चुभा करते है।
मै इन्हे छोटा भाई समझ कर माफ कर दूं,
पर किस लिए, सपने थे,
जिन्हे मै चलना सिखा रहा था।
आज वो दौड़ गये बहुत दूर।
मुझसे बहुत आगे निकल गये।
और मैं मूढ़ की भांति खड़ा रहा।
अब मुझमें रोकने की हिम्मत न थी।
एकटक देखता रहा उन्हे,
आंखो से ओझल हो जाने तक।।

Written by- Pavan Kumar Yadav.



कोई टिप्पणी नहीं: