समाचार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
समाचार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, जनवरी 27, 2021

किसान आन्दोलन Kisan Andolan

सरकार अपने कार्य में सफल हो गई। पिछले दो-तीन महीनों से जिसके कारण जद्दोजहद में जूझ रही थी, आखिर उस को अंजाम दे ही दिया गया। किसानों का दिल्ली आकर प्रदर्शन करना सरकार द्वारा ही बिछाया गया जाल रहा होगा। जिसमें देश का अन्नदाता स्वाभाविक रूप से फंस गया। पिछले दिनों में किसानों द्वारा किए गए प्रदर्शन में शतकाधिक किसान शहीद हो गए। जिसकी किसी को कोई भी परवाह नहीं। सोशल मीडिया से लेकर समाचार पत्रों तक कोई भी इस आवाज को उठाने की जहमत नहीं करता।
यह घटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसे पहले ही रोका जा सकता था। परंतु इस दिशा में कोई भी कदम नहीं उठाया गया। बल्कि इनके ऊपर ही झूठा आरोप लगाकर देशद्रोही और आतंकवादी सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है।
ध्यातव्य है कि यदि यहां पर किसान हार जाएंगे तो स्पष्ट तौर पर लोकतंत्र हार जाएगा। क्योंकि इसके बाद भी कई प्रकार के बिल आएंगे जो सामान्य जन की अस्मिता पर चोट पहुंचाएंगे और हम सभी में इतनी हिम्मत नहीं होगी किसका विरोध भी कर पाए। किसानों के विरोध में अपनी आवाज उठा कर जिस प्रकार की देशभक्ति की जा रही है वह देश भक्ति न होकर अन्य प्रकार की भक्ति है। कृपया इससे अपना और समाज का बचाव करें। सरकार से हमारा अनुरोध है कि अपने अहम् का त्याग करें, उदार बनें और किसानों की बात सुने।
#FarmersProtest 
#KisanAndolan 
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

मंगलवार, अप्रैल 14, 2020

वैश्विक महामारी के दौर में चीन की संदिग्ध भूमिका

आज संपूर्ण विश्व जिस महामारी से जूझ रहा है, उसकी कल्पना मात्र से शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस प्रकार की वैश्विक महामारी भारतीय युवा अपने जीवन काल में पहली बार देख रहे हैं। इसमें मैं भी शामिल हूं। इतने जटिल और युद्ध जैसे हालात कभी नहीं थे। इस बात में तो कोई संदेह नहीं कि इस वायरस (कोविड-19) कोरोना वायरस का कर्ता-धर्ता देश चीन है। वहीं से यह पूरे विश्व में फैला। आज पूरा विश्व समुदाय इसके सामने घुटने टेके खड़ा है। सभी देश युद्धस्तर पर हाथ-पैर मार रहे हैं। कहीं से भी उम्मीद की किरण निकलती दिखाई नहीं दे रही है।

अब इसे चीन की गलती कहें या लापरवाही। जिसका खामियाजा आज सभी को भुगतना पड़ रहा है। हालांकि चीन के इतिहास और इसके  रवैया की को देखते हुए इसे गलती नहीं कहा जा सकता। यह चीन की लापरवाही का ही नतीजा है। ज्यादा अच्छा होता कि चीन विश्व समुदाय के सामने आकर माफी मांगते हुए, इसके खतरे से सभी को अवगत कराता और सभी देशों से सहयोग बनाए रखने की अपेक्षा करता। परंतु उसने ऐसा कुछ न करके सभी को धोखे में रखा। इस पूरे घटना के संबंध में भी उसने उदारत्मक रवैया अपनाने की बजाय अपनी पीठ पर लगी धूल को झाड़ने में लगा रहा। अपनी साफ छवि को बनाने में लगा रहा। हालांकि उसे इसमें भी कहीं से सफलता मिलती दिखाई नहीं दे रही है।

अमेरिका और चीन ट्रेड वॉर किसी से छिपा नहीं है। जब इस समय सभी देश कोरोना से लड़ने में लगे हैं। तो ऐसे समय में आर्थिक मंदी से सभी देशों की सारी व्यवस्थाएं ठप पड़ गई हैं। ऐसे में आर्थिक बाजार का गिरना भी स्वाभाविक है। मानो बाजार पर चीन  शुरू से ही अपनी गिद्ध दृष्टि लगाये बैठा था। अभी कुछ ही दिनों पूर्व अमेरिकी कंपनियों के शेयर में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। इसी मौके का फायदा उठाते हुए  चीन ने अमेरिकी कंपनियों के शेयर खरीद लिए। ऐसा ही उसने भारतीय बैंक एचडीएफसी के साथ किया। जब इस बैंक के शेयर अपने निम्नतम स्तर पर थे तब, चीन ने उनकी एक परसेंट हिस्सेदारी खरीद ली। सभी देश इस समय चीन द्वारा जनित कोरोना वायरस से जूझ रहे हैं। और चीन सब कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने पर लगा हुआ है। इस पूरे प्रकरण में चीन की भूमिका संदिग्ध लगती है। बीच-बीच में अमेरिकी सरकार भी चीन पर आरोप लगाती रहती है। यह आरोप सिर्फ जबान का फिसलना नहीं है, बल्कि यह अमेरिकी सोच का प्रतिबिंब है। अमेरिका चीन की इस करतूत से बौखला आया हुआ है।
चीन द्वारा दी जा रही मदद भी सिर्फ एक दिखावा ही बनकर रह गई है। उनके द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव आदि देशों को भेजा गया मास्क और सैनिटाइजर बिल्कुल बेकार किस्म का था। जिसे कई बड़े देशों ने वापस भी कर दिया था। चीन पर संदेह करने का एक कारण और है कि वह विश्व समुदाय के समक्ष गलत आंकड़े भी पेश कर रहा है। वह अपने देश के मृतकों की संख्या पर भी पर्दा डाल रहा है। ढ़ाई करोड़ सेलफोन के बंद होने की खबर से चीन पर लगने वाले आरोप को और भी बल प्राप्त होता है। इस वैश्विक महामारी के दौर में चीन को विश्व के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए था परंतु उसने अपनी कुटिल और विस्तार वादी नीति अपनाकर अपनी निकृष्ट सोच का परिचय दिया है। 

कोरोना के इस संकट में संपूर्ण विश्व की निगाहें भारत पर ही टिकी हुई हैं। शुरुआती दिनों में भारत के राजनैतिक दल अपनी महत्वाकांक्षाओं की पुष्टि में लगे हुए थे। जिसके लॉकडाउनन में थोड़ी देरी अवश्य हुई। परंतु बाद में सरकार और जनता द्वारा साथ आकर इस पर काबू करने सफल प्रयास किया गया। इसमें भारत की जनता का योगदान सराहनीय रहा है। जगह-जगह पर लॉकडाउन को सफल बनाने में सहयोग दिया। डॉक्टरों द्वारा 16 से 20 घंटे का कार्य काबिले तारीफ रहा है। पुलिस द्वारा बल प्रयोग के कहीं-कहीं से आहत करने वाले दृश्य भी आ रहे थे। परंतु कुल मिलाकर उनका कार्य सराहनीय रहा है। इस वैश्विक महामारी में सभी विभाग अपने कार्यों को बड़ी ईमानदारी से कर रहे हैं। बस लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका संदेह के घेरे में है। यह अंग्रेजों और राजनीतिक दलों की नीतियों ‛फूट डालो राज करो’ का अक्षरशः पालन कर रहे हैं। इनसे अब उम्मीद भी नहीं रही है। इनसे बेहतर पत्रकारिता तो वह यूट्यूबिये कर रहे हैं, जिनकी सदस्यता भी 1000 से कम है।

मौजूदा हालात में भारत में कोरोना की संख्या 10,000 (पोस्ट लिखने तक) हो गई है। इसमें निरंतर एक तेजी के साथ बढ़ोतरी हो रही है। हमें अपने ऊपर संयम रखने की आवश्यकता है। संकल्प लें कि अनावश्यक घर से बाहर नहीं निकलेगें। घर में रहें, सुरक्षित रहें। सरकार के आदेशों का पालन करें। हम इस महामारी पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।
धन्यवाद।

शुक्रवार, मार्च 02, 2018

एसएससी स्कैम


पूरे देश से दिल्ली में इकट्ठा हुआ छात्रों का समूह जो अपने अधिकारों की मांग करते हुए आज तीसरे दिन भी प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं। रंगोत्सव के इस रंगीन माहौल में पूरा देश होली मना रहा है परंतु होली के दिन भी ये बच्चे घर जाने की बजाय दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं इस उम्मीद में कि उनका यह प्रदर्शन अवश्य सफल होगा। अपने घर से दूर होने का गम लिए हुए इन छात्रों का समूह स्टाफ सिलेक्शन कमीशन के सामने प्रदर्शन कर रहा हैं। जो नेता माइक पर गला फाड़-फाड़ कर देशहित किसानहित और छात्र हित की बातें किया करते थे आज वो पूरी तरीह से साइलेंट मैन बन गये हैं।

जब देश प्रदर्शन कर रहा है तो उम्मीद के मुताबिक ये फॉरेन ट्रिप पर ही है। खैर इसके अलावा भी देश में बहुत से सत्ता पक्ष के नेता है जो आकर इन छात्रों से मिलना भी जरूरी नहीं समझते। वोट लेते समय भर-भर कर वोट लेकर गए
और अच्छे दिन बदले में क्या मिला एक और कार्यकाल की मांग। जिस तरह हम अच्छे दिन के लिए तरस गए उसी तरह यह भी एक और कार्यकाल के लिए तरस जाएंगे। देश में पहली बार पढ़े लिखे नौजवान प्रदर्शन करने पहुंचे हैं और इनका सामना करने की हिम्मत सिर्फ और सिर्फ सच लोगों में हैं इसलिए झूठे सामने आने से कतरा रहे हैं। आज तक जितना चीखें हैं माइक पर उन सब का हिसाब देने का वक्त आ गया है। किस आधार पर एक और कार्यकाल मांग रहे हैं। सत्ता में आते ही सभी वस्तुएं के नाम अचानक बढ़ा दिए गए। अब चुनाव आ रहा है फिर धीरे-धीरे उन्हीं चीजों के दाम दो-दो तीन-तीन रुपए घटा देंगे और कहेंगे कि हमने देश हित में काम किया।

SSC के परीक्षार्थी पूरे सबूत के साथ दिल्ली में डटे हुए हैं उम्मीद करते हैं जल्द से जल्द इनकी मांगे पूरी हो।