शनिवार, अगस्त 15, 2015

||मैं भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं||

किसी की जिन्दगी का अधूरा किस्सा हूं।
गरीबी में जीने को मजबूर उस परिवार का हिस्सा हूं।
सारी विपदाओं से लड़कर आगे बढ़ना।
सारे सुख-दुःख खुद ही सहते रहना।
आज पूरी दुनिया से कहना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 1

आभावों को छोड़ स्वभाव बदल कर जीता हूं।
मुसीबतो से डरकर नही उनसे लड़कर सीखा हूं।
मेहनत का कोई विकल्प नही होता।
जब हो दृढ़ संकल्प विफलता का नामो निशान नही होता।
सूरज की तरह जलकर चमकना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 2

उनके आदर्शो को मार्ग बनाकर चलना है।
सबके साथ सबका हाथ पकड़कर आगे बढ़ना है।
यहां हर व्यक्ति विकास की सीढ़ी है।
बदलती हुई तस्वीर देश की अगली पीढ़ी है।
ऐसे विकसित स्वदेश में रहना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 3


एक हाथ में गीता तो दूसरे में कुरान रहेगा।
धरती पर कभी धर्म के नाम पर खून नही बहेगा।
काबिलियत से भारत को फिर विश्वगुरू बनाना है।
अपने तिरंगे के नीचे पूरा विश्व लाना है।
अपनी हर सांस मातृभूमि पर कुर्बान करना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 4


भारत को विकास की ऊचाँइयों पर ले जाना है।
बेरोजगारी, भ्रष्टाचार का दाग माथे से मिटाना है।
यहां किसी को न हिन्दू न मुसलमान बनाएगें।
इस देश को सिर्फ हिन्दुस्तान बनाएगें।
फिर से मिलकर 'जय हिन्द' कहना चाहता हूं।
मै भी अब्दुल कलाम बनना चाहता हूं॥ 5



      -written by PAVAN KUMAR YADAV

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