रविवार, नवंबर 23, 2025

मोबाइल की छिनैती

कुछ निजी कार्यों के बाद आज थोड़ी फुर्सत मिली है। फुर्सत क्या कहें, यह बस कहिए, कुछ खाने के लिए समय निकाल लिया हूं। कई बार जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं अकस्मात रूप से आपके समक्ष आ जाती हैं। जिसका न सिर होता है न पैर। अपना कोई लक्ष्य होता है, न उद्देश्य; बस आ ही जाता हैं और हमें इसे झेलना ही पड़ता है। जीवन का हर स्वाद मीठा ही नहीं होता।

बात पिछले दिनों की है, जब मैं पटना गया था—बिहार स्टेट एलिजिबिलिटी टेस्ट का सर्टिफिकेट लेने के लिए। दूसरे स्टेट वालों का सर्टिफिकेट पटना में ही मिलता है। मेरे साथ दो-तीन मित्र और थे। हमारी योजना थी कि सुबह जाएंगे और अपना सर्टिफिकेट लेकर घर लौट आएंगे। जो दोनों परीक्षाओं में पास हैं, उनका टीजीटी और पीजीटी की पात्रता परीक्षा का सर्टिफिकेट अलग-अलग स्कूलों में मिल रहा था। हालांकि, मेरा एक मैथमेटिक्स से था और दूसरा हिंदी से था, तो मेरा भी दो अलग-अलग स्कूलों में मिलेगा।


सबसे पहले तो मैं टीजीटी पात्रता परीक्षा का सर्टिफिकेट लेने के लिए पटना के एक स्कूल में गया। वहां पहुंचे तो बताया गया कि फाइलों की एक बहुत लंबी सूची है, बहुत ढेर सारे बंडल हैं। उसमें से आपका सर्टिफिकेट निकालने के लिए कुछ उन्हें पैसों की जरूरत थी। हालांकि, उन्होंने मांग तो ₹500 की की थी; परंतु किसी प्रकार मैंने उनसे निवेदन करने के पश्चात ₹200 में बात तय हो गई और उन्होंने मुझे मेरा सर्टिफिकेट दे दिया। वहां से लौटते वक्त मेरे मन में कई तरह के विचार चल रहे थे कि बिहार कितना भ्रष्ट है, यहां कितना भ्रष्टाचार है! ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन क्या कर सकते हैं?

बिहार में शराब बंद है; तो वहां की जो युवा शराब के आदी है, अब वह शराब के अन्य विकल्पों की तरफ आकर्षित हो रही हैं। इनमें से कुछ दवाएं हैं जिससे उन्हें नशा होता हो, इसका प्रयोग करने लगे हैं। 

खैर,

मैं अपना सर्टिफिकेट लेकर जब लौट रहा था, तो रास्ते में मुझे किसी मित्र का मैसेज आया और मैं फोन निकाल कर चलते-चलते अपने दोनों हाथों से रिप्लाई दे रहा था। इतने में एक बाइक सवार दुबला-पतला लड़का मेरे हाथ से फोन छीन कर भागने लगा।मैं  भी अपनी पूरी क्षमता के अनुसार दौड़कर बाइक के पीछे वाला हैंडल पकड़ लिया और गाड़ी को दाहिने की तरफ तेजी से धक्का दिया। बाइक सवार नीचे गिर गया।

मैं उसको पकड़ कर रोड के एक तरफ ले गया और अपना फोन ले लिया। इतने में लोगों की भीड़ जुट गई और लोग उसे मारना-पीटना शुरू कर दिए। लोगों का गुस्सा बहुत ज्यादा था। इसके पश्चात मैंने 112 नंबर पर फोन किया और पुलिस बुलाई। दोनों लोग थाने गए, वहां पर उन्होंने मेरा भी फोन जब्त कर लिया और कहा, "इस फोन को आप कोर्ट से आर्डर लेकर आएंगे, तब छूटेगा।"



इसके बाद दीपावली, फिर छठ पूजा और फिर बिहार चुनाव—इन सब के बीच मैं फोन छुड़वाने की प्रक्रिया में जुटा रहा। लोग कहते हैं कि कोर्ट-कचहरी का चक्कर... वहां इतना जल्दी काम नहीं होता है। हालांकि, अथक प्रयास के परिणाम स्वरूप मुझे मेरा फोन मिल सका।

कुछ घटनाओं में हम सही होते हुए भी लोगों की नजरों में बेवकूफ बन जाते हैं। मेरे कई मित्रों ने मुझे सुझाव दिया, "तुम्हें पुलिस बुलाने की जरूरत नहीं थी। तुम्हें तुम्हारा फोन मिल गया, तो लौट आते घर।" दूसरी तरफ पुलिस वाले का कहना था कि "अगर यह लड़का छूट गया, तो रोज तीन-चार फोन की छिनैती करेगा।"

खैर, अच्छा या बुरा जो भी हुआ, मुझे मेरा फोन मिल गया। मुझे इसी बात की सबसे ज्यादा खुशी है।

जो कोई भी मित्र बिहार की यात्रा पर है, विशेष तौर पर पटना में हों, उन्हें अपने फोन को बहुत संभाल कर सावधानी पूर्वक रखना चाहिए। यदि फोन पर बात करना ही है, तो किसी एक किनारे-कोने में खड़े होकर बात करनी चाहिए; अन्यथा इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि आपका भी फोन छीन लिया जाए।

© Pavan Kumar Yadav 

#pavanyayavar #travelblogger #patna #patnacity #Bihar #BiharNews