तो दोस्तों,
लंबे समय के बाद किसी यात्रा की योजना बनी। यह यात्रा प्रमुख रूप से दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम ‘स्पंदन’ में सम्मिलित होने की थी। इस कार्यक्रम का आयोजन श्रीकांत ट्रस्ट द्वारा किया गया था, जो कि दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में था। दिल्ली जाने के लिए मैं और हमारे मित्र अवनीश ने मिलकर योजना बनाई। इसके साथ ही इसमें पूरी दिल्ली का भ्रमण करना भी शामिल था।
परंतु किसी कारण से यह संभव नहीं हो सका।
यात्रा की शुरुआत कुछ इस प्रकार हुई...
बड़ौदा से हमने कोटा तक का टिकट करवाया था, उसके बाद सेकंड क्लास से जाना था। कोटा उतरने के बाद वहां की प्रमुख जगहों को देखना सुनिश्चित किया। एक खास बात यह है कि कोटा उतरने के बाद ही वहां पर किन-किन स्थलों पर हमें जाना है, यह तत्काल ही तय किया और योजना बनाई। सुबह-सुबह उतरकर हमने सबसे पहले चंबल उद्यान में जाने का विकल्प चुना।
चंबल उद्यान, अगर कहें तो, बड़ौदा में स्थित कमाटी बाग जैसा ही एक उद्यान है, जो चंबल नदी के किनारे बसा हुआ है। प्रकृति के बिल्कुल समीप कह सकते हैं। यह उद्यान नगरवासियों के लिए प्राकृतिक सौंदर्य स्थली का सुंदर स्थान है। यहां पर विभिन्न तरह की फूलवारी और एक शानदार नदी का किनारा भी है, जो फोटोग्राफी के लिए सुंदर दृश्य उपलब्ध कराता है।
यहां कुछ समय बिताने के बाद हम गोदावरी मंदिर गये। मंदिर की, या कहें, कोटा के आसपास के क्षेत्र में एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जो हमारे लिए आश्चर्य से कम न था। गोदावरी मंदिर में कुछ गायें बांधी गई थीं, जिन्हें आप वहीं से चारा खरीद कर खिला सकते थे। मुझे थोड़ा अजीब लगा कि – “गाय तुम्हारी, दूध तुम्हारा, चारा मैं क्यों खिलाऊं?” चारा खिलाने में कोई समस्या नहीं है, समस्या यह है कि चारा भी तुम ही से खरीदूं और तुम्हारी गाय को ही खिलाऊं।
शहर का वातावरण भी समस्या-भरा लगता है। चारा खिलाने वालों में अक्सर वही लोग होते हैं, जो अपने माता-पिता को दो वक्त का खाना न खिला सकें। क्या कहा जाए!
फिर वहां से गढ़ पैलेस म्यूजियम गये। कोटा का गढ़ पैलेस म्यूजियम राजा के राजसी ताने-बाने का सबूत है। वहां पर मैंने राजा उमेद सिंह की एक तस्वीर देखी, जिसमें ब्रिटिश के सभी बड़े अधिकारी बैठे थे और स्वयं राजा खड़े थे। यह मुझे एक भारतीय होने के नाते थोड़ा खराब लगा। व्यक्ति कहीं भी हो, कुछ भी करे, परंतु उसे रीढ़विहीन नहीं होना चाहिए।
७ वंडर्स पार्क की उपलब्धि बस इतनी है कि एक मित्र को पढ़ा दिया कि मैं न्यूयॉर्क घूमने आया हूं। उसने कई तरह से प्रति-प्रश्न किया, परंतु किसी प्रकार से उसकी सभी शंकाओं का समाधान किया। खास बात यह है कि उसे अभी भी यही पता है कि मैं न्यूयॉर्क से लौटा हूं। अभी उसकी सच्चाई बताना बाकी है।
दोपहर की धूप और थकान की वजह से हम सेवन वंडर्स पार्क में पेड़ों की छांव और अच्छी हवा के कारण सो गए। इसके बाद सिटी पार्क घूमे हम, और फिर लौट आए।
जब भी आप घूमने जाएं तो जो योजना बनाई है, उस पर कायम रहना आवश्यक होता है। सिटी पार्क से लौटने के बाद हमने एक दिन कोटा में विश्राम करने का सोचा, लेकिन यह हमारी योजना का हिस्सा नहीं था। इसके कारण हमें बाद में परेशानियां उठानी पड़ीं और संभवतः यही मुख्य कारण रहा, जिसके कारण हम दिल्ली नहीं घूम सके।
जब आप कहीं घूमने के लिए निकलते हैं तो जो आपकी पूर्व-योजना होती है, उसका पालन बड़े ही अनुशासन से करना चाहिए। अन्यथा, जो लक्ष्य लेकर आप चले हैं, वह पूर्ण नहीं होगा। इस यात्रा से यह एक सीख मिली।
स्पंदन कार्यक्रम पूरे दिन का था। उसे एक लेख में समेटना संभव नहीं है। कोशिश करेंगे धीरे-धीरे उस पर लिखें।
©पवन कुमार यादव
#यात्रा_वृत्तांत #कोटा_यात्रा #दिल्ली_यात्रा #Spandan2025 #TravelDiaries #KotaTour #DelhiTrip #TravelExperience #TravelIndia #यात्रा_अनुभव #TravelWithFriends #TravelPhotography #TravelBlogger #यात्रा_कथन #MuseumVisit #SevenWondersPark #CityPark #ChambalGarden #GodavariTemple #TravelInspiration #TravelForLife #IndianTravelBlogger #YatraMemoir