रविवार, अगस्त 31, 2025

तेजगढ़ आदिवासी संग्रहालय

हिंदी विभाग द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसके उपलक्ष्य में सभी विद्यार्थियों को छोटा उदेपुर के तेजगढ़ नामक स्थान पर आदिवासी संग्रहालय का भ्रमण कराया गया। हमारे साथ विभाग के प्रोफेसर एवं छात्र-छात्राएं भी रहे। जो कार्यक्रम को सफल और समृद्ध बना बनाए।
ग्लोबल गांव की संज्ञा से सुशोभित होना बहुत आनंददायक प्रतीत होता है। लेकिन जिस ग्लोबल गांव की संज्ञा का उपयोग करके हम निश्चिंत हो जाते हैं कि अब सब कुछ मंगल है परंतु ऐसा धरातल पर कहीं भी दिखाई नहीं देता है। ऐसे कौन से कारण है कि हमें आदिवासी जीवन शैली एवं उनसे जुड़ी हुई वस्तुओं के लिए संग्रहालय बनाने की आवश्यकता पड़ रही है? कहीं न कहीं हम आधुनिकता की दौड़ में शामिल होने के लिए भागे जा रहे हैं। आधुनिक होना उतना बुरा नहीं है। जितना हम समझते हैं। पर जब हम अपनी संस्कृतियों, मान्यताओं पूर्वजों की निशानियों उनके ज्ञान और कौशल की अवहेलना करके भागते हैं। तब यही आधुनिकता अभिशाप का कारण बन जाती है। कोई भी संग्रहालय कहीं न कहीं पीछे छूट रही इन संस्कृतियों को समृद्ध करने के उद्देश्य से बनाया जाता है। सभी लोग चाहते हैं कि हम अपने पूर्वजों की सोच उनके क्रियाकलाप एवं यंत्रों को जाने अच्छे से पहचानें। क्योंकि हमारी शुरुआत का प्रारंभिक बिंदु वही है। 
भले ही आधुनिकता की चक्र चौथ में विलासिता भरी हो परंतु माटी की महक और जीवन की सुंदरता का उसमें अभाव होता है। आधुनिकता एक ऐसी दौड़ है जिसमें पीछे लौटना बहुत मुश्किल हो जाता है। इन्हीं संग्रहालयों के माध्यम से एक संकरा ही सही, परंतु मार्ग तो अवश्य ही है जो आदि और आधुनिक को जोड़ने का कार्य करता है। 
आदिवासी संग्रहालय, तेजगढ़, छोटा उदेपुर, गुजरात का एक आदिवासी संग्रहालय है जिसकी स्थापना The Maharaja Sayajirao University of Baroda के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर ने की थी। यह लगभग 10 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। एक और विशेषता यह है कि जबकि लगभग सभी संग्रहालय बड़े-बड़े शहरों और मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं। वहीं यह तेजगढ़ के एक छोटे से गांव में बना हुआ है। देखने में साधारण है परंतु आकर्षक बहुत है। यहां पढ़ने के लिए एक लाइब्रेरी की स्थापना की गई है। इसके साथ ही आदिवासी बंधुओं द्वारा कुछ विशेष चीज जैसे लकड़ी से निर्मित ईश्वर की मूर्तियां, बांस के बने उपकरण, खाना बनाने के लिए प्रयोग में आने वाले चूल्हे, लगभग 180 प्रकार के विभिन्न वाद्य यंत्र, बिना सुई के निर्मित सुंदर और उत्कृष्ट आभूषण, विभिन्न अस्त्र-शस्त्र, विविध प्रकार की कलाकृतियां आदि अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं का संग्रह किया गया है। इसके अतिरिक्त यहां पर कपास से कपड़े बनाने का भी कार्य किया जाता है। यहीं पर एक छोटा सा स्कूल भी है जो बच्चों को शिक्षित करने का कार्य करता है। आसपास के क्षेत्र के बच्चे भी विभिन्न सरकारी गैर सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए लाइब्रेरी की सहायता लेते हैं। शोध की दृष्टि से देखा जाए तो वहां पर रहने की उचित व्यवस्था है जिससे वहां पर कुछ दिन रुक कर अपने शोध पर कार्य किया जा सकता है। 
इस संग्रहालय का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह रहा कि देश के विभिन्न आदिवासी जातियों एवं जनजातियों के बीच प्रचलित बोलियों के विषय पर एक शोध कराया गया। जिनमें से कुछ भाषण विलुप्त होने की कगार पर थी। उनके भी संरक्षण का प्रयास इस संस्था द्वारा किया जा रहा है। 
सिर्फ बोलियों ही नहीं वरन् जो कुछ भी विलुप्त होने की अंतिम दशा पर है उसे भी संरक्षित करने का काफी सराहनीय प्रयास किया जा रहा है। 
बंगाल की बड़ी लेखिका महाश्वेता देवी का इस संस्था से जुड़ी रहीं। उनके स्नेह की कृपा स्वरूप उनका अस्थि कलश इसी संस्था के प्रांगण में स्थापित है। जो बीताते कालखंड में इसकी उन्नति का मापदंड बनेगा।
आदिवासियों के विकास में यह संग्रहालय अपनी महती भूमिका निभा रहा है। 
यदि आदिवासी जीवन शैली को समझना चाहते हैं तो गुजरात आगमन पर वहां अवश्य जा सकते हैं।

© Pavan Kumar Yadav 'Saptarshi'

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#तस्वीर हमारी गैलरी से। 👇


























































2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

तस्वीरे मेरी गैलेरी से है🤣🤣🤣🤣

Pavan Kumar Yadav ने कहा…

सभी तस्वीरों का संग्रहण व्हाट्सएप व्हाट्सएपकिया गया है। आ गए हैं तो पढ़ भी लीजिए।