लौहपुरुष !
जब भी यह शब्द हमारे
कर्णपटल को स्पर्श करता है तो हमारे भीतर एक निर्भीक साहसी एवं अटल विचारो वाले
एवं लोहे के समान इरादों वाले महापुरुष की आकृति उभर कर सामने आती है। यह आकृति
किसी की नहीं बल्कि हमारे देश के पहले उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री `सरदार बल्लभ भाई` पटेल जी की है।
सरदार बल्लभ भाई पटेल जी का जन्म 31 अक्टूबर 1875 ई0 को बोरसाद तालुको के करमसद नामक गाँव में हुआ था । इनके पिता कृषक के साथ-साथ एक स्वतन्त्रता
संग्राम सेनानी भी थे । इनकी माँ लाड़बाई , जो एक गृहणी थी। बल्लभ भाई
बाल्यकाल में ही एक दबंग स्वभाव एवं लौह पुरुषतत्व के लिए जाने जाते थे। बचपन
की एक घटना के आधार पर हम उनके व्यक्तित्व
को समझ
सकते है-
जब वे नडियाड मे पढ़ते थे तब
उनके स्कूल के कुछ शिक्षक जबरदस्ती छात्रों को अपने यहा से ही किताबें खरीदने को
मजबूर करते थे, परंतु उन
शिक्षकों के खिलाफ जाने मे छात्रों की हिम्मत जवाब
दे जाती थी। यह बात जब पटेल जी को पता चली तो उन्होने शिक्षकों के इस कृत्य को लेकर स्कूल में एक बड़ा आंदोलन
छेड़ दिया। इस आंदोलन के प्रभाव के कारण स्कूल चार-पाँच दिनो तक बंद रहा। अंतत: शिक्षकों को झुकना पड़ा। इस प्रकार बल्लभ भाई की स्पष्टवादिता, विचारों की परिपक्वता एवं डटे रहने की प्रवृति का संकेत विद्यार्थी जीवन
से ही मिलने लगा था।
सन 1897 में
मैट्रिक की परीक्षा पास करने के उपरांत इनका जीवन महत्वकांक्षाओ से भर गया । अबतक
जो दुनिया देखी थी, उसकी अपेक्षा यह अधिक विस्तृत थी। घर कि स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं थी कि
उच्च शिक्षा की तरफ कदम बढ़ाया जाय। इसके लिए सर्वप्रथम आत्मनिर्भर बनना जरूरी था ।
परन्तु इन नौकरियों मे रमना इनकी नियति मे नही था । सन 1900 ई0 मे बल्लभ भाई
मुखतारी की परीक्षा पास करके गोधरा में वकालत करने लगे। कुशल वाक्पटुता के कारण थोड़े ही
दिनो में इनकी धाक जाम गयी। इनकी कुशाग्रता का परिचय हम एक प्रसंग से भी देख सकते
है –
एक अंग्रेज़
अफसर था। वह जब भी किसी अभियुक्त की गवाही लेता था, तो उसे
शर्मिंदा करने के लिए उसके सामने दर्पण रखवा देता था । जब यही काम उसने बल्लभ भाई
के मामले में किया तो उन्होने कहा "इस बात को भी दर्ज कर लिया जाय कि
अभियुक्त के सामने दर्पण रख कर बयान लिया
जाता है।" इस पर मजिस्ट्रेट ने कहा कि "ऐसा करने कि कोई जरूरत नही है।" फिर बल्लभ भाई ने प्रत्युत्तर दिया कि “यह दर्पण तो शहादत
मे पेश हुआ माना जाएगा और मुकदमें के कागजात के साथ सेशेन्स कोर्ट में पहुंचेगा
।” यह बात सुनकर मजिस्ट्रेट घबरा से शर्म से पानी-पानी हो गया । बाद में उसे अपने
इस कुकृत्य पर पछतावा भी हुआ।
काफी समय तक
वकालत करने के बाद वे इंग्लैंड गए। बैरिस्टरी कि पढ़ाई मे बल्लभ भाई का प्रथम स्थान
था, जो किसी भी भारतीय के लिए गर्व
की बात थी। जब विधि की डिग्री का वितरण
करने के लिए सबका स्वागत किया जा रहा था तो सभी की नज़रें इन्हीं पर टिकी थी।
स्वदेश लौटने के बाद इनके रुतबे मे वृद्धि हुयी, साथ ये अपने
भाई विठ्ठल जी से प्रभावित होकर अपना जीवन देशहित में अर्पित कर दिया। मड़ौसा में
एक भाषण मे इन्होने कहा –“स्वतन्त्रता चाहिए तो इस देश को सन्यासी होना चाहिए, स्वार्थ त्याग करके सेवा करनी चाहिए।” सन 1915 ई0 में बल्लभ भाई गुजरात
सभा के सदस्य बनें। अपने परिश्रम एवं सक्रियता के कारण आम जन में इनकी थोड़ी
ख्याति भी बढ़ी। तत्कालीन सामाजिक स्थिति
को भाप कर हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने के लिए कायदे-आजम मोहम्मद जिन्ना का
जोरदार स्वागत किया गया । साथ ही साथ इस सभा की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी जी
ने जिन्ना से भी गुजराती में भाषण दिलवाया
। यह पहली ऐसी सभा थी जहां पर अंग्रेजी की बजाय गुजराती मे सम्पन्न हुयी थी
। गोधरा की इस सभा की तीसरी विशेषता यह थी की धीरे –धीरे ये समूह देश की राजनैतिक
चेतना को हवा देने लगे । अभी तक जो बैठक सिर्फ एक वार्षिक उत्सव अथवा हर्षोल्लास
के लिए हुआ करती थी उसे गांधी जी एवं पटेल जी ने अपनी ऊर्जा से देशहित की तरफ
अग्रसरित कर दिया था ।
गुजरात मे पड़े
एक भीषण अकाल के बाद जब अंग्रेजी हुकूमत देशवासियों की मदद करने से मुकर गयी तब सन
1918 ई० मे खेड़ा में (जनपद-खेड़ा) किसानो की एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया । इसमे
बम्बई की ‘हेमरूल’ के सदस्य भी सम्मिलित
हुये । इस सभा का सभा पति होने के कारण पटेल जी ने एक जोरदार भाषण दिया। अपनी भाषा
कला से जन-जन मे ऊर्जा का संचार किया एव देशभक्ति की अलख जगाई । यहाँ उनके द्वारा
दिये गए भाषण का कुछ अंश रखना आवश्यक है । जिससे हम उनकी सीधी सपाट और स्पष्ट भाषाशैली के बारे में
जान सकेंगे-
“इस लड़ाई में
सारे देश में आग लग जाएगी । दु:ख सहन किए बिना सुख नही मिलता और मिल जाए तो वह
लंबे समय तक नहीं टिकता । मजबूत और दृढ़ विचारों की हो, इसी में राज्य की शोभा है। नालायक और डरपोक प्रजा की वफादारी में सार
नहीं। निडर स्वाभिमान
की रक्षा करने वाली वफादार प्रजा ही सरकार को शोभा देती है।”
इन आंदोलनो
एवं सभाओं के जरिये बल्लभ भाई गांधी जी के और करीब आ गए थें वह गांधी जी के विचरों
एवं उनकी कार्यक्षमता से अत्यंत प्रभावित थें । गांधी जी भी उन्हे एक अच्छे
सामाजिक कार्यकर्ता के रूप मे बहुत मानते थे । गांधी जी द्वारा पटेल जी के लिए कहे
गए शब्दो से ही उनकी पारखी दृष्टि का पता चलता है।–
“यह गाँव
बल्लभ भाई का है बल्लभ भाई यद्यपि अभी आग में
है और उन्हे अच्छी तरह तपना है, परंतु मेरा ख्याल है
कि उसमें कुन्दन बन कर निकलेगें।”
एक अन्य आम जन
सभा को सम्बोधित करते हुये गांधी जी ने बल्लभभाई के सम्बन्ध में कहा –“सेनापति कि
चतुरता उसके सहायकों की पसंद पीआर निर्भर है। अनेक लोग मेरी बात मानने को तैयार थे, किन्तु मेरे सामने उठा की मेरा उपसेना पति कौन हो?
इसी समय मेरी दृष्टि बल्लभभाई पर पड़ी।
विचार उठा की अक्खड़ आदमी कौन है, और यह क्या काम करेगा।
किन्तु जैसे–जैसे वे मेरे निकट आए, मेरा उनपर विश्वास बढ़ता
गया और वे मेरे लिए अनिवार्य हो गए। यदि
मुझे बल्लभ भाई न मिले होते तो जो
काम हुआ है, वह न होता ।”
गांधी जी के
संपर्क में आने के पश्चात बल्लभ भाई अपने आप सम्पूर्ण रूप से देश के लिए समर्पित कर
दिये । सान 1924 ई० और 1927ई० में बल्लभ भाई अहमदाबाद म्यूनिसिपैलिटी के चेयरमैन चुने
गए । इसी क्रम में सन 1932 ई० में जब वे गांधी जी के साथ यरवदा जेल में थे तो गांधी
जी ने अपने अनुभव का उल्लेख करते हुये लिखा था- “मुझको उनके अद्वितीय शौर्य का पता था
पर कभी मैं उनके साथ नही रहा था , जिसका सौभाग्य मुझे इन सोलह महीनों
में प्राप्त हुआ । जिस स्नेह से उन्होने मुझे प्लवित कर दिया उससे मुझको अपनी स्नेहमणीमटा
का स्मरण हो आता है। मुझे यह नहीं मालूम था कि उनमे इतना मातृ तुल्य गुण है ।”
देश के प्रति अपनी
निष्ठा का निर्वहन करते हुये 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री एवं
गृहमंत्री चुने गए। इसी समय सरदार जी की अध्यक्षता में देशी रियासतों को सुलझाने के
लिए रियासती विभाग की स्थापना की गयी । पटेल जी ने अपने लौह पुरुषत्व के बल पर 562
रियासतों का विलय करके इस देश को अखंड भारत का दर्जा दिलवाया। इसी कारण इन्हे ‘भारत का बिस्मार्क’ एवं ‘लौह पुरुष’ भी कहा जाता है । निरंतर संघर्षपूर्ण जीवन जीने के कारण इन्हे पुस्तक रचना
का अवकाश प्राप्त न हुआ। आम सभाओ एवं पत्रों
को समेंट कर उनके विचारो का पोषण आज भी समाज में कायम है।
बल्लभ भाई के व्यक्तित्व एवं कृतत्व के सम्बन्ध मे प० जवाहरलाल
नेहरू जी ने कहा था-
"वे इच्छा और उद्देश्य में दृढ़ हैं,एक महान संगठनकर्ता हैं। भारत की स्वाधीनता केआर उद्देश्य में लगन के साथ लगे रहे है और उन्होने आवश्यक शक्तिशाली प्रतिरोध की सृष्टि की है।कुछ लोग उन्हे पसंद नि कर सके क्योकि वे उनसे सहमत नही हो सके । परंतु अधिकांश देशवासियो ने उन्हे अपनी रुचि का नेता पाया है। उनके साथ अथवा मातहत काम करके हिंदुस्तान की स्वतन्त्रता की स्थायी नीव डाली है। उनके लिए, जिन्हे उनके साथ काम करने का सौभाग्य मिला है , वे शक्ति स्तम्भ की भाति रहे है... यह बहुत बड़ी कहानी है जिसे हम सब जानते है, इसे इतिहास के अनेक पृष्ठों मे लिखा जाएगा, जहा उन्हे नवीन भारत का निर्माता था एकीकरणकर्ता बतलाकर उनके विषय में अन्य भी अनेक बाते लिखी जायेगी ।”
घर परिवार एवं
देश-समाज की तमाम जिम्मेदारियो को विधिवत पूरा करने के पश्चात आखिरकार वह काली रात
15 दिसंबर 1950 ई० को आ ही गयी, जब देश का ‘पारस’ सदा-सदा के लिए ईश्वर के परम धाम को प्रस्थान कर गया। ‘पारस’ काही भी हो पर उसकी गुणवत्ता में कभी कोई ह्रास
नहीं होता । ‘पारस पुरुष’ के रूप में सरदार बल्लभ भाई पटेल के विचार आज भी
हमे अपने इरादो को लौह बनाने के लिए प्रेरित करते है । कवि नीरज ने इस सम्बंध मे कहा
है-
“ न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सिर्फ बात है। किसी की आँख खुल गयी, किसी को नीद आ गयी ॥ ”
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