एक बात बताएं?
हमारे गांव में एक पेड़ होता है उसका नाम है 'बेहया'
शायद तुम भी सुनी हो कभी?
...तो जब हम लोग कोई एक ही शरारत या बदमाशी बार-बार करते थे, तो माता जी कहतीं थी 'का एकदम बहया के पेड़ हो गयल होव्वा! एक पैसा क समझ ना हौ, बुद्धि भ्रष्ट हो गइल हौ का...!!
लेकिन तब बेहया शब्द कहने व सुनने से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
...और ये भी समझ नहीं थी 'बेहया' शब्द गाली ही है एक तरीके से।
...लेकिन समय बदलता गया!
...और अब मुझे कोई भी बेहया नहीं कहता! क्योंकि अब मैं समझदार हो गया हूँ।
और बेहया, बेहयाई और बेहयापन जैसे शब्दों के सटीक अर्थ जानता हूँ।
लेकिन न जाने क्यों मैं जब भी तुमसे बात करने के लिए तत्पर होता हूँ, तो तुम्हें लिखे एक-एक शब्द पर मेरा अन्तर्मन मुझे 'बेहया' जैसी हजारों गलियां दे जाता है। हमेशा मैं उसे समझा बुझाकर शान्त करता हूँ। मेरा अन्तर्मन मेरे प्रति बहुत ही कठोर आलोचक है। मुझे याद नहीं कि यह पिछली बार मेरी तारीफ कब किया था!!
...खैर, ये बिल्कुल भी नितान्त और व्यक्तिगत बातें हैं! ये बातें सिर्फ मेरे और 'मेरे उसके' के बीच की हैं। लोग इन दोनों के बीच किसी को भी शामिल नहीं करते हैं, चाहे वह कितना भी करीबी ही क्यों न हो!
...पर आज मैंने वो गोपनीयता भी भंग कर दी, जो हमारे बीच थी। और हाँ एक बात की सफाई दे दूं कि मेरा अन्तर्मन तुम्हारा दुश्मन नहीं है,न ही उसे तुमसे कोई घृणा है। वह बस मेरा कटु आलोचक है।
Pavan Kumar Yadav
photo: google
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