गुरुवार, दिसंबर 19, 2024

जीवन, गांव और शहर

 सुबह की खुशनुमा धूप!







 

जीवन के प्रति निराश हो चुके मनुष्यों के लिए प्रकृति से जुड़ाव उनमें पुनः जीजिविषा का संचार कर सकता है। जीवन में आनंद भर सकता है। 






मेरे मस्तिष्क में यह सदैव प्रश्न उठता है कि यदि आप अपने आसपास के लोगों से पूछेंगे। आपको शहर और गांव दोनों में से कहां पर रहना ज्यादा अच्छा लगता है? लगभग सब का जवाब यही होगा, कि मुझे गांव में रहना ज्यादा पसंद है। 

हालांकि बात यहां शहर और गांव की न हो करके, कहां पर हम प्रकृति से अधिक तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं, उसकी है। लोगों का ऐसा मानना है कि प्रकृति से जुड़ाव, गांव में आसानी से हो सकता है। परंतु आज के समय में गांव भी शहर की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अब तो गांव को भी गांव का दिया जाए तो उसे बुरा लग जाता है। इसके कई कारण है। 

बाजारवाद की आवश्यकता है कि गांव को शहर बना दिया जाए जबकि सामान्य जनमानस की आवश्यकता है कि शहर की जीवन-शैली गांव के जैसी हो जाए। 


बिल्कुल, यह संभव है लेकिन इस भाग दौड़ भरी दुनिया में दो मिनट रुक कर स्थिरता से सोचने का समय किसके पास है। प्रयास स्वयं से दूर है, जबतक यह अपने पास या अपने से शुरू न किया जाए तो संभव नहीं है।

फिलहाल के लिए, प्रकृति प्रेमी बनना, उसकी सेवा करना और उसे जीवित रखना ज्यादा जरूरी है।

~ Pavan Kumar Yadav  


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photo- by me from VS Hall.

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