क्या आपने कभी कृष्ण कमल कृष्ण कमल देखा है?
आज दोपहर को हम अपने मित्रों के साथ खाना खाकर लौट रहे थे। अचानक से क्या मन में आया कि चलो आज यूनिवर्सिटी बोटैनिकल गार्डन घूम कर आते हैं। इस इच्छा के पीछे भी एक कारण है कि आज का मौसम बहुत उमस भरा था — कभी धूप तो कभी छांव की स्थिति थी, हवा में कोई गति नहीं थी। इस कारण ऐसी योजना पर ध्यान गया।
दूसरा कारण यह है कि हमारे हॉस्टल प्रोफेसर विक्रम साराभाई हाल की गेट के ठीक सामने यूनिवर्सिटी का बोटैनिकल गार्डन भी है। तो हॉस्टल में जाते ही अचानक से यह ध्यान पड़ा और मन हुआ कि चलो चलते हैं।
फिलहाल बहुत ज्यादा तो हम लोग घूम नहीं सके, बस शुरुआत का ही हिस्सा घूम सके। कारण यह कि यह गार्डन बहुत बड़ा है — एक बार में घूमना उस शोधार्थी के लिए संभव इसलिए भी नहीं है जबकि वह उसके विषय से इतर हो।
गार्डन के गेट के भीतर प्रवेश करते ही सौ से डेढ़ सौक्षमीटर अंदर गए ही थे कि अचानक से मेरा ध्यान नीले रंग के चक्रीय पुष्प की ओर गया। मैं बिना कुछ सोचे-समझे ठीक उसी दिशा में आगे बढ़ गया। पुष्प के समीप गए और इसकी सुंदरता देखकर मुग्ध हो गए। शायद इस पुष्प को पहली बार देखने का आकर्षण रहा हो, जो मुझे इसके समीप खींच लाया।
मुझे इस पुष्प का नाम नहीं पता था और अधिक जानकारी इकट्ठा करने के बाद पता चला कि यह जो पुष्प है, इसे कृष्ण कमल, राखी बेल (scientifically, Passiflora incarnata or Passiflora caerulea) अथवा महाभारत कमल के नाम से जाना जाता है। इसकी बनावट बिल्कुल महाभारत में प्रयोग हुए पत्रों और यंत्रों की भांति प्रतीत होती है।
पुष्प में जो किनारे पतले-पतले सफेद और बैंगनी रंग के डाल्टन डंठल निकले हैं, उन्हें कौरवों के सौ पुत्रों की संज्ञा दी जाती है। शायद इनकी संख्या भी सौ के आसपास हो — मैंने गिनने का प्रयास नहीं किया।
इन्हीं डंठलों पर गोलीनुमा एक गोलाकार आकृति बैंगनी और सफेद रंग से मिलकर बनी है, जिसे श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र की संज्ञा दी जाती है। शायद कृष्ण कमल नाम भी इसी के कारण पड़ा हो।
इसके बाद जो पीले रंग की पांच डंडियाँ दिखाई दे रहीं हैं, वे पांडवों की संख्या के समान हैं, जिस कारण इसे पांडव का प्रतीक भी मान लिया जाता है।
इसके बाद जो बची तीन डांडियाँ हैं, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के नाम से संबोधित किया जाता है।
इन्हीं डंडियों के ठीक नीचे गोलनुमा आकृति है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण की संज्ञा दी जाती है।
इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता भी है कि यदि सावन के महीने में इस पुष्प के माध्यम से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करेंगे तो सौ डंडियों के कारण एक ही बार में सौ बार उनका जलाभिषेक का लाभप्राप्त होगा।
परंतु यह एक मान्यता ही है — इसमें कितनी सच्चाई है, कितनी नहीं, इसके बारे में तो मैं नहीं कह सकता।
परंतु एक निवेदन तो अवश्य कर सकता हूँ कि जहां कहीं भी यह कृष्ण कमल दिख जाए, तो इसे तोड़ने का प्रयास न करें।
इसके अतिरिक्त, इस कृष्ण कमल के आयुर्वेदिक लाभ भी हैं। जिस पर कम ज्यादा मात्रा में बहुत से लोगों ने लिखा है।
©पवन कुमार यादव
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