शुक्रवार, जनवरी 01, 2016

कुछ जख़्म

कुछ ज़ख्म यादो ने दिया,
कुछ तन्हा रातों ने दिया!
दुखता था हर बार उसे,
पर 'बेवफा' कहने दिया!!

बड़े गौर से अमल में लाती थी,
मेरी हर मशविरा मग़र!
दोस्तदार-ए-दुश्मन ने,
इकरार-ए-मोहब्बत रहने दिया!!

हमेशा मेरे वफ़ा की तौहीन
करती रही उसकी मजबूरियां!
सम्हल जाता मैं पर उसने
इनकार-ए-मोहब्बत रहने दिया!!



दोस्तदार-ए-दुश्मन-Lover


Written by- PAVAN KUMAR YADAV

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