सोमवार, जुलाई 10, 2017

सावन

आइए हम सब मिलकर सावन के पवित्र माह का स्वागत करते हैं। इस बार का सावन इसलिए खास है क्योंकि इसकी शुरुआत महादेव के दिन से अर्थात सोमवार से हो रही है और इस माह में पांच सोमवार का भी योग बन रहा है। सुबह की बारिश के साथ इसकी शुरुआत सोने पर सुहागा के समान है।
आज से ही सड़कों के किनारे भगवा वस्त्रधारी बोल बम की गूंज के साथ कांवरिया लिए हुए महादेव की खोज में निकल चुके हैं। बच्चे, बड़े और बूढ़े सभी उत्साहित हैं। भगवान शंकर की जटा से निकलती गंगाजी के अमृत समान जल से महादेव का पग पखारने के लिए। बुजुर्ग जो जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच गए हैं, शरीर की असमर्थता के बावजूद महादेव की माया से मुक्त नहीं होना चाहते। बस उन्हीं के हो जाना चाहते हैं। युवावस्था में भोलेनाथ की भांग ज्यादा पसंद की जाती है। क्योंकि इसके तेज को संभालने के लिए उनका शरीर सामर्थ्यवान होता है। वहीं बच्चे चंद्रेश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए बेलपत्र एवं धतूरे आदि से उनका पूजन-अर्चन करते हैं।
बारिश से श्रावण मास की शुरुआत खरीफ की फसलों के लिए अच्छा संकेत है। किसान धान की नर्सरी की रोपाई के साथ-साथ ज्वार, मक्का, बाजरा और उड़द की खेती भी इसी माह में करते हैं। खासतौर से खरीफ की फसल के लिए श्रवण माह उपर्युक्त है।
स्त्रियों के लिए भी यह महीना अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है। स्त्रियां भोलेनाथ एवं मां पार्वती का पूजन करती है एवं अपने अच्छे भविष्य की कामना करती हैं। सावन के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज के रुप में मनाया जाता है। बिना झूले के इस पर्व की कल्पना कैसे संभव हो सकती है? सुहागिन स्त्रियों अपने हाथों में मेहंदी लगाकर, हरी चूड़ियां एवं हरे परिधान पहनकर आने वाली इस हरियाली का स्वागत करती हैं। यहां झूला झूलते हुए गीत गाने का भी चलन है।
सनातन जीवनशैली की मान्यतानुसार मां पार्वती और भगवान शिव का मिलन इसी तीज के दिन ही हुआ था। जिसकी खुशी, मां ने सखियों संग झूला झूल कर मनाई थी। उसी के बाद से यह परंपरा आज तक कायम है।
महाकवि विद्यापति जी द्वारा रचित मैथिली भाषा का यह गीत नचारी अत्यंत लोकप्रिय है:
कखन हरब दुःख मोर, हे भोलानाथ।
दुखहिं जनम भेल दुखहिं गमाओल
सुख सपनहु नहिं भेल, हे भोलानाथ
आछत चानन अवर गङ्गाजल
बेलपात तोहिंदेव, हे भोलानाथ।
यहि भव सागर थाह कतहुं नहिं
भैरव धरु करुआर, हे भोलानाथ।
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति
देहु अभय बर मोहिं, हे भोलानाथ।

पवन कुमार यादव

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