वियोग..!
जब कोई मोह बंधन से मुक्त होता है तो उस मनोदशा को वियोग कहते हैं। वियोग सिर्फ वहीं संभव है जहां प्रेम है! आज मैं यहां प्रेम का बखान करने के लिए नहींं बल्कि प्रेम से इतर वियोग की चेष्टाओं पर विराम लगाने की कोशिश में आया हूं। वियोग से पूर्व की मनोदशा और हृदय के भाव प्रेम के साक्ष्य है। इस दशा का एहसास शायद ही ज्यादा देर रहे। लोग कहते भी हैं कि अच्छा समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता, लेकिन विरह एक विकट स्थिति है।
सामान्यतः इससे केवल दृढ़ संकल्पी लोग ही बाहर आ पाते हैं। कई बार हम इसे एक नकारात्मक बिंदु के तौर पर देखते हैं क्योंकि मोहबन्धन के बाद हम खुद को वियोगपाश में पहले से भी सुदृढ़ तरीके से बांध लेते हैं। यही पाश हमारा जीवन दूभर कर देता है। हम सिर्फ यादों का बोझ बढ़ा लेते हैं। अरे, यादें तो बस एक मुस्कान देती हैं। शांत चित्त मन से दिल पर हाथ रख कर ये सोचे कि उन्हें हमसे क्या उम्मीदें थी? वह हमारे भविष्य के बारे में क्या सोचते थे? क्या मैं उन के अनुरुप कार्य करने में सक्षम हूं? बस फिर क्या..! लग जाइए अपने लक्ष्य की प्राप्ति में।
...और जिस लक्ष्य का रास्ता उनके आशीर्वाद से होकर गुजरे तो फिर उसे पूरा होने से भला कौन रोक सकता है।
पवन कुमार यादव
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