बुधवार, अप्रैल 06, 2022

लखनऊ

लखनऊ मेरे प्रिय शहरों में से एक है। वहां पर अपने सहपाठियों से मिलना, गुरुजनों से मिलना, हर बार एक नया उत्साह देता है। गुरुजनों का आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करना बड़े सौभाग्य की बात है। जब मुझे सहपाठियों और गुरुजनों से मिलने के विषय में जानकारी हुयी। तभी से मेरे मन में एक झिझक उत्पन्न हो गई थी। किस प्रकार अपनी असफलताओं को लेकर उनके समक्ष उपस्थित होऊं? पता नहीं यह मेरे लिए अच्छा होगा या नहीं? साथ के मित्र न जाने क्या सोचेंगे मेरे विषय में?

इस प्रकार के तमाम प्रश्न मेरे मन को गहरे अंधकार में धकेलने लगे। लेकिन जैसे-जैसे मिलना होता गया, वैसे वैसे सब कुछ बहुत सहज हो गया। बहुत आसान हो गया। हृदय एक नए उत्साह से भर गया। सब कुछ बिल्कुल नए जैसा लगने लगा। थोड़ी बहुत पढ़ाई और कुछ सामाज से संबंधित बातें हुई। नए दृष्टिकोण प्रतिपादित हुए। कुछ धारणाएं टूटी।

इन सब घटनाओं से एक नई सीख मिली कि कभी भी माता-पिता और गुरु से मिलने में शर्म और शंका नहीं होनी चाहिए। जितनी बार भी मिलना हो सके। इसी में अपना सौभाग्य समझना चाहिए। क्योंकि हम कभी भी इनसे मिलने के बाद खाली हाथ नहीं लौटते, कुछ ना कुछ अवश्य ही प्राप्त होता है। व्यक्तिगत तौर पर ऐसा मेरा मानना है। जिन्हें भी इस प्रकार का अनुभव होगा। वह मेरी बात से अवश्य सहमत होंगे।

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© Pavan Kumar Yadav






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