शनिवार, अगस्त 13, 2022

बुद्ध का वास्तविक स्वरूप

वास्तविकता से कल्पना कितनी भिन्न होती है। इसका प्रमाण गौतम बुद्ध की ये कलाकृति है। हम जब भी किसी चीज की कल्पना करते हैं तो वह सदैव सुंदर होती है। जब हमे कल्पना ही करना है तो कुरूप क्यों किया जाए। यह तथ्य भी स्नमरणीय है। किन्त जब उसकी तुलना वास्तविकता से होती है तो हमारी कल्पना कहीं नहीं ठहरती।

बुद्ध का वास्तविक स्वरूप 

यह तस्वीर गौतम बुद्ध के समय के आसपास की है। बहुत से लोगों का मानना है कि यह कलाकृति बहुत हद तक गौतम बुद्ध के वास्तविक शरीर से मेल खाती है। बुद्ध के लंबे समय तक उपवास रखने और ज्ञान की प्राप्ति में इधर-उधर भटकने के बाद की तस्वीर प्रतीत होती है। इस कलाकृति में उनके शरीर की एक एक हड्डी को स्पष्ट रूप से पहचाना और गिना जा सकता है। उनकी आंखें इस हद तक अंदर धंस गयी हैं कि भरोसा करना मुश्किल प्रतीत होता है। लेकिन यह तस्वीर देखने के उपरांत बार-बार ऐसे भाव उमड़ते हैं कि अपनी अंतिम अवस्था में गौतम बुद्ध की शारीरिक काया काफी हद तक इसी तरह रही होगी।

क्या कोई भरोसा कर सकता है की इस जीर्ण, क्षीण, दुर्बल काया के मानव के भीतर ऐसा पुंज प्रकाशित हो रहा था जिसके भीतर एक युग को पलटने की क्षमता विद्यमान थी। अधिकतर संतो के वास्तविक स्वरूप को इसी तरह पाते हैं। हालांकि चित्रों और चलचित्रों में हमारी कल्पनाएं उन्हें बहुत सुंदर बलिष्ठ और चमकदार प्रदर्शित करती हैं, परंतु है तो वह सिर्फ एक कल्पना ही!


© पवन कुमार यादव



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